परमवीर चक्र विजेता राम राघोबा राणे की जीवनी हिंदी में जानते हैं।। Biography of Ram Raghoba Rane!!
WWW.rkstudy123.blogspot.inJanuary 19, 2023
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Ram Raghoba Rane
इस Article में जानेंगे प्रसिद्ध परमवीर चक्र विजेता राम राघोबा राणे की जीवनी। तो आइए जानते हैं:-
राम राघोबा राणे का जन्म 26 जून, 1918 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले के हवेली गांव में हुआ था।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा पिता के स्थानांतरण के कारण कई स्थानों पर हुई।
इनके पिता चंदिया गांव से पुलिस कांस्टेबल थे।
1930 में राणे असहयोग आंदोलन से प्रभावित हुए और उसमें अपना सहयोग देने की सोचने लगे।
यह देखकर इनके पिता चंदिया में अपने पैतृक गांव वापस आ गए।
1940 में दूसरा विश्व युद्ध चरम पर था।
राणे बचपन से ही साहसिक जीवन चाहते थे।
इन्होंने भारतीय सेना में जाने का मन बनाया।
10 जुलाई, 1940 को वह बाॅम्बे इंजीनियरिंग में आ गए।
वहां इनके उत्साह और दक्षता के कारण इन्हें अनेक ऐसे अवसर प्राप्त हुए, जिसमें इन्होंने अपनी काबिलियत को साबित किया।
यह अपने बैच के ' सर्वोत्तम रिक्रूट ' चुने गए।
वहां पर इन्हें पदोन्नत करके नायक बना दिया गया और इन्हें कमांडेट की छड़ी प्रदान की।
ट्रेनिंग के बाद राणे 26 इंफ्रेंटी डिवीजन की 28 फील्ड कंपनी में आ गए।
यह कंपनी बर्मा में जापानियों से लड़ रही थी।
राणे और उसके साथी इस काम में कामयाब हो गए।
इन्होंने नेवी के जहाज से आगे जाने का निर्णय लिया, लेकिन दुर्भाग्यवश वह योजना सफल नहीं हो पाई और इन्हें नदी खुद पार करनी पड़ी।
यह एक बेहद जोखिम भरा काम था, क्योंकि उस नदी पर जापान की जबरदस्त गश्त और चौकसी लगी हुई थी।
इसके बावजूद राणे और उनके साथी, जापानी दुश्मनों की नजरों से बचते हुए उनको मात देकर इस पार आ गए।
इस सूझबूझ एवं हिम्मत भरे काम के लिए उन्हें तुरंत हवलदार बना दिया गया।
इसके बाद राणे लगातार सेना में अपनी बहादुरी, चतुराई और नेतृत्व क्षमता से अधिकारियों को प्रभावित करते रहे।
फलस्वरूप इन्हें सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशंड आॅफिसर बनाकर जम्मू कश्मीर के मोर्चे पर भेज दिया गया।
दुश्मन पर दबाव बनाने के लिए बालवाली रिज, चिंगास तथा राजौरी पर कब्जा जमाने के लिए नौशेरा - राजौरी मार्ग का साफ होना बहुत जरूरी था।
उन सुरंगों को नाकाम करके वहां से अवरोध हटाने जरूरी थे।
8 अप्रैल, 1948 बाॅम्बे इंजीनियरिंग के सेकंड लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे को यह काम सौंपा गया और शाम तक रिज को फतह कर लिया गया।
दुश्मन की भारी गोलाबारी और बम वर्षा शुरू हो गई।
प्रारंभ में राम राघोबा के दो जवान मारे गए और पांच घायल हो गए।
घायलों में राने स्वयं भी शामिल थे। लेकिन इसके बावजूद वे अपने टैंक के पास से नहीं हटे और दुश्मन की मशीनगन तथा मोर्टार का सामना करते रहे।
अनेक मुश्किलों का सामना कर उन्होंने दुश्मनों को पस्त कर दिया।
सेकंड लेफ्टिनेंट राणे ने जिस बहादुरी और हिम्मत के साथ कुशल नेतृत्व कर भारत को विजय दिलाई, इसके लिए उन्हें ' परमवीर चक्र ' प्रदान किया गया।
यह सम्मान राणे ने स्वयं प्राप्त किया।
राणे ने लगन, हिम्मत और मेहनत से यह साबित कर दिया कि व्यक्ति अपने हौसलों से न केवल शत्रुओं को नाकों चने चबवा सकता है, बल्कि ऊंचाइयों को भी छू सकता है।
उनका व्यक्तित्व प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रेरित और दिशा दिखाने वाला है।
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